उत्तराखंड में रणवीर मुठभेड काण्ड :13 साल बाद आखिर क्यों चर्चा में है ये मामला….

देहरादून: रणवीर मुठभेड काण्ड में 13 साल से जेल में बंद एक इंस्पेक्टर, तीन दरोगा व कांस्टेबल को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गयी है। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट हर्षवीर प्रताप ने पुलिसकर्मियों की तरफ़ से मज़बूत पैरवी की.. उन्होंने बताया कि जेल में बंद सात पुलिस कर्मियों में से दरोगा चन्द्रमोहन सिंह रावत व राजेश बिष्ट को 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गयी थी।

आज सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर सुनवायी के बाद तत्कालीन डालनवाला कोतवाली संतोष जयसवाल, गोपाल दत्त भट्ट, तत्कालीन एसओजी प्रभारी नीतिन चौहान, नीरज यादव व कांस्टेबल अजीत को जमानत पर रिहा करने के आदेश कर दिये हैं। यह एक संयोग ही होगा कि शुक्रवार को ही रणवीर एनकाउंटर हुआ था और शुक्रवार को ही इनको जमानत मिली।

क्या था मामला
तीन जुलाई 2009 को बागपत निवासी रणवीर देहरादून अपने दो अन्य मित्र के साथ आया था इसी दौरान आराघर चौकी प्रभारी गोपाल दत्त भट्ट ने वायरलैस पर सूचना दी कि मोटरसाईकिल सवार तीन युवकों ने उसके साथ मारपीट करते हुए उसका पिस्टल लूट लिया था। जिसके बाद पुलिस ने नाकेबंदी कर रणवीर को लाडपुर के जंगल में मुठभेड में मार गिराने का दावा किया तथा पुलिस का कहना था कि यह वहीं युवक था जिसने अपने साथियो के साथ मिलकर दरोगा भट्ट की पिस्टल लूटी थी।

घटना वाले दिन देश की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल मसूरी स्थित लालबहादुर शास्त्री एकेडमी में आयी थी तथा बाहर से यहां आयी मीडिया को वहां एंट्री नहीं मिली तो उन्होंने रणवीर इंन्काउटर को लाइव दिखाना शुरू कर दिया था। जिसके अगले ही दिन रणवीर के परिवार वाले दून पहुँचे थे। 6 जुलाई को रणवीर के पिता ने पुलिस कर्मियो के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कराया। 7 जुलाई को मामले की सीबीसीआईडी जांच शुरू हुई और 8 जुलाई को नेहरू कालोनी थाने से रिकार्ड जब्त कर लिये गये।

इस मामले में किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत व राजनाथ सिंह को दखल देना पडा था तब जाकर तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने 8 जुलाई को मामले की सीबीआई जांच कराने की सिफारिश की थी। 31 जुलाई को सीबीआई की टीम दून पहुंची तो उन्होंने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अवलोकन किया जिसमे रणवीर कर इस मुठभेड को फर्जी करार दिया।

जिसके बाद सीबीआई ने 18 पुलिस कर्मियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी थी। रणवीर के पिता ने मामले की सुनवायी गाजियाबाद या फिर दिल्ली में कराने का न्यायालय में आग्रह किया था जिसके बाद मामले की सुनवायी दिल्ली में शुरू हुई तथा सभी आरोपियों को दिल्ली भेज दिया गया। 6 जून 2010 को सभी न्यायालय ने 18 पुलिसकर्मियों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी। इस मामले में हाईकोर्ट से साक्ष्य ना होने की वजह से 11 पुलिस कर्मियों को छोड दिया गया था।