उत्तराखंड की राजधानी के निजी स्कूलों के लिए यह नया नियम अनिवार्य, एमडीडीए ने दिया इतने माह का समय…….

देहरादून: दून में बढ़ती आबादी के साथ भूजल पर निर्भरता 90 प्रतिशत पर पहुंच गई है। जरूरतों की पूर्ति के लिए हम भूजल का जमकर दोहन तो कर रहे हैं, लेकिन भूजल रीचार्ज कैसे होगा, इसको लेकर चिंता कम ही है।

ऐसे में कल के लिए जल को बचाने की दिशा में मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) ने बड़ा कदम बढ़ाया है। एमडीडीए उपाध्यक्ष ने सभी निजी विद्यालयों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग (वर्षा जल संग्रहण) की अनिवार्यता कर दी है। आदेश के अनुपालन के लिए स्कूल प्रबंधन को छह माह का समय दिया गया है।

एमडीडीए उपाध्यक्ष बंशीधर तिवारी के आदेश के मुताबिक, जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण की तेज रफ्तार में जल की मांग बढ़ना एक सामान्य प्रक्रिया है। हालांकि, इसका एक प्रतिकूल असर यह देखने को मिल रहा है कि भूजल पर निर्भरता बढ़ गई है और इसके अनुपात में रीचार्ज और प्रबंधन को लेकर अपेक्षित प्रयास अभी भी कम हैं।

भविष्य में भूजल की उपलब्धता में किसी तरह की समस्या पैदा न हो, इसे देखते हुए वर्षा जल संग्रहण की दिशा में बड़े कदम उठाने की जरूरत है। कल के जल को सुरक्षित रखने के लिए प्राधिकरण क्षेत्र के सभी निजी विद्यालयों में वर्षा जल संग्रहण की अनिवार्यता की जा रही है। इसके दायरे में निजी विद्यालयों के सभी निर्मित और निर्माणाधीन भवन आएंगे। भविष्य में बनने वाले भवनों में भी वर्षा जल संग्रहण की अनिवार्यता रहेगी।

लिहाजा, सभी निजी विद्यालयों के प्रबंधन को आदेशित किया जाता है कि छह माह के भीतर वर्षा जल संग्रहण के इंतजाम कर लिए जाएं। ताकि इसका उपयोग कक्षों के शौचालयों से लेकर विद्यालयों की बागवानी की सिंचाई, सफाई, निर्माण कार्यों आदि में किया जा सके। इससे पेयजल पर दबाव कम होगा तो भूजल का दोहन भी नियंत्रित किया जा सकेगा।

उपाध्यक्ष बंशीधर तिवारी ने कहा कि जिन विद्यालयों में वर्षा जल संग्रहण के इंतजाम पहले से हैं, वह पत्र प्राप्ति के एक सप्ताह के भीतर इस कार्यालय को सूचित करें। अन्यथा नगर नियोजन एवं विकास अधिनियम के तहत सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। इसके साथ ही सभी सहायक अभियंताओं को आदेश दिया गया है कि वह अपने-अपने सेक्टर में आदेश का पालन कराना सुनिश्चित करें। आदेश की प्रति जिला शिक्षा अधिकारी को भी सूचनार्थ और आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी गई है।

भूजल पर बढ़ते दबाव और रीचार्ज की कमी का नतीजा है कि दून का भूजल स्तर औसतन तीन मीटर नीचे चला गया है। पूर्व में भूजल का औसत स्तर 12 मीटर था, जो 15 मीटर नीचे चला गया। इसके साथ ही पेयजल के अन्य स्रोत अनियोजित विकास के चलते एक-एक कर या तो समाप्त हो रहे हैं या सूखते जा रहे हैं।