उत्तराखंड में वेल्हम स्कूल की याचिका खारिज, राज्य सरकार के आदेश को हाई कोर्ट ने सही ठहराया…….

नैनीताल: नैनीताल हाई कोर्ट ने देहरादून के प्रतिष्ठित वेल्हम बॉयज स्कूल की याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका कोविड-19 (कोरोनाकाल) में ट्यूशन और अन्य शुक्ल माफी के राज्य सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली थी। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को आदेश जारी करने का संवैधानिक अधिकार है। कोर्ट के समक्ष यह बात भी आई कि लॉकडाउन में जब स्कूल बंद थे, तब आवासीय विद्यालय छात्रों से न केवल ट्यूशन फीस, बल्कि छात्रावास शुल्क, मेस और कपड़े धोने का शुल्क, घुड़सवारी के लिए शुल्क, विकास शुल्क, तैराकी शुल्क आदि जैसी विभिन्न अन्य श्रेणियों के तहत शुल्क भी वसूल रहे थे।

वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी व न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ में याचिका पर सुनवाई की गई। याचिका में कहा गया था कि सरकार के पास निजी गैर-सहायता प्राप्त आवासीय विद्यालयों की फीस से संबंधित आदेश जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने निर्णय पारित कर कहा है कि राज्य सरकार संविधान के अनुच्छेद-162 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए आदेश जारी करने के अपने अधिकार के भीतर थी।

कोविड-19 महामारी और उसके परिणामस्वरूप लगाए गए लाकडाउन के कारण उत्पन्न हुई आकस्मिक स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार का निजी गैर-सहायता प्राप्त आवासीय विद्यालयों को उन सेवाओं के लिए शुल्क न लेने के लिए आवश्यक निर्देश जारी करना उचित था, जिनका लाभ छात्रों ने उस अवधि के दौरान नहीं उठाया था। क्योंकि स्कूल बंद थे और कक्षाएं ऑनलाइन संचालित की गई थीं।

सुनवाई के दौरान सरकार के अधिवक्ता की ओर से कहा गया कि जब पूरा देश कोविड-19 की चपेट में था और शिक्षण संस्थान बंद थे, तब निजी गैर-सहायता प्राप्त आवासीय विद्यालय छात्रों से न केवल ट्यूशन फीस, बल्कि छात्रावास शुल्क, मेस और कपड़े धोने का शुल्क, घुड़सवारी के लिए शुल्क, विकास शुल्क, तैराकी शुल्क आदि जैसी विभिन्न अन्य श्रेणियों के तहत शुल्क भी वसूल रहे थे।

मुख्य स्थायी अधिवक्ता सीएस रावत ने स्पष्ट किया कि जब कक्षाएं ऑनलाइन मोड पर चल रही थीं तो कोई भी आवासीय विद्यालय ऐसे शुल्क नहीं ले सकता था। यहां तक कि रखरखाव के नाम पर भी नहीं। सरकारी आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि ऐसे स्कूल, जिनमें अन्य डे स्कूल भी शामिल हैं, ऑनलाइन कक्षाओं के लिए केवल ट्यूशन फीस ले सकते हैं।

सरकारी आदेश में यह प्रविधान किया गया था कि शारीरिक कक्षाओं की अनुमति नहीं दी गई है और शिक्षा ऑनलाइन मोड के माध्यम से दी जानी है। इसलिए स्कूल उन छात्रों से केवल ट्यूशन फीस लेंगे, जो ऑनलाइन मोड के माध्यम से निर्देश प्राप्त कर रहे हैं। सरकार के अधिवक्ता ने यह भी कहा कि सार्वजनिक भलाई के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका को ध्यान में रखते हुए सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा। ताकि निजी आवासीय स्कूल, अपनी प्रमुख स्थिति के कारण, छात्रों के माता-पिता, अभिभावकों को लूटने में सक्षम न हों।

राज्य का संवैधानिक कर्तव्य था कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करे कि महामारी के दौरान उनके माता-पिता के झेले गए वित्तीय संकट के कारण बच्चों की शिक्षा को झटका न लगे। न्यायालय ने कहा कि इस प्रस्ताव पर कोई विवाद नहीं हो सकता कि राज्य की कार्यकारी शक्ति उन मामलों तक विस्तारित होती है, जिनके संबंध में राज्य विधानमंडल को कानून बनाने का अधिकार है।

हालांकि, यह शक्ति अप्रतिबंधित नहीं है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि यह अच्छी तरह से मान्यता प्राप्त है कि किसी विशेष विषय से संबंधित मामलों में उक्त विषय पर किसी संसदीय कानून की अनुपस्थिति में राज्य सरकार के पास कार्य करने और कार्यकारी आदेश जारी करने का अधिकार है।