उत्तराखंड में डॉक्टर एन एस बिष्ट ने पूरी व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी, मरीजों को बिना इलाज धक्का देने के लिए नही बने हैं डॉक्टर अस्पतालों में जरूरी दवाएं पहुंचाए निदेशालय…..
देहरादून : मरीजों को बिना इलाज धक्का देने के लिए नही बने हैं डॉक्टर अस्पतालों में जरूरी दवाएं पहुंचाए निदेशालय- डॉ बिष्ट*
पुराने डीजी हेल्थ की फेयरवेल पार्टी और नए डीजी के स्वागत समारोह मे अलग ही नजारा देखने को मिला। बाहर की दवाओं के मुद्दे और स्वास्थ्य महानिदेशालय मे हुई डॉक्टरों की बैठक की वायरल वीडियो के मुद्दे पर अपनी बात रखने आए डॉक्टर एन एस बिष्ट को कुछ डॉक्टरों ने बोलने से रोकने की कोशिश की यहां तक कि एक बार तो माइक भी बंद कर दिया।
फिर भी डॉक्टर एन एस बिष्ट अपनी बात कह गए, बोले कि अगर मैं खटकता हूं – तो वीआरएस दे दीजिए मगर मैं अपनी बात कह कर रहूंगा।
डॉ बिष्ट ने महानिदेशालय में होने वाली डॉक्टरों की प्रपंच पूर्ण बैठको की ओर ध्यान दिलाया जिसमें स्वास्थ्य सुधारों की बातों के बजाय अस्पताल के डॉक्टरों पर छींटाकशी की जाती है तथा एक माननीय के इलाज और दवाओं को बाहर से आए लोगों के सामने अशिष्टतापूर्वक और प्रोटोकॉल तोड़कर बहस का मुद्दा बनाया जाता है।
डॉ बिष्ट ने कहा कि आपके पास अस्पतालों में 2% रोगियों के इलाज की दवाएं नहीं तो डॉक्टरों पर किस नैतिकता से बाहर की दवाएं लिखने का लांछन लगाया जाता है और CR खराब करने की प्रक्रिया चलाई जाती है। सरकारी अस्पतालों में प्राइवेट की फीस और जांचों का खर्च ना उठा सकने वाले अनियंत्रित रोगो के गंभीर मरीज आते हैं उनको क्या आयरन की गोली पकड़ा कर घर भेज दिया जाए।
सरकारी जिला अस्पताल में अनियंत्रित शुगर, BP, दमा, गठिया,मिर्गी, माइग्रेन, सर्वाइकल लोबैकपेन, थायराइड, बुखार, एलर्जी के मरीज ही ज्यादा आते हैं। यह लोग छोटे सरकारी अस्पतालों से पहले प्रोटोकॉल की दवा खाकर आते हैं – या प्राइवेट अस्पताल की महंगी दवा का पर्चा लेकर आते हैं। इनको देने के लिए हमारे पास दूसरे या तीसरे प्रोटोकॉल की कोई दवा मौजूद नहीं। सरदर्द, माइग्रेन, थायराइड,गठिया,सर्वाइकल, न्यूरोपैथी, किडनी का रोग,लिवर का रोग, मानसिक रोग इत्यादि की तो एक गोली भी मौजूद नहीं।
इसके बाद डॉक्टर बिष्ट ने महानिदेशालय में होने वाली अनर्गल, अनुर्वर मीटिंग नैक्ससबाजी और सालों से जमे हुए निष्क्रीय डॉक्टरों का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि डीजी ऑफिस की मीटिंग की एक वीडियो वायरल हो रही है। देहरादून सीएमओ और महानिदेशक के बीच जो गोपनीय बातचीत होनी चाहिए थी – क्योंकि मामला एक संवैधानिक माननीय से संबंधित था- उस मीटिंग के बाहर से आए सीएमओ, कोरोना के नोडल ऑफिसर इत्यादि स्टाफ के सामने बिना शिष्टाचार और प्रोटोकॉल के बड़ी बेअदबी से डिस्कस किया गया।
उन्होंने कहा कि जब महानिदेशालय मे इतनी घोर अनुशासनहीनता व्याप्त हो तो IAS ऑफिसर को DG Health बनाने की मांग जायज लगती है। पूर्व में हम IAS ऑफिसर के DG बनने का विरोध करते आए हैं- मगर अब नहीं करेंगे क्योंकि महानिदेशालय अशिष्टता, फूहड़ता और कार्मिक भ्रष्टाचार का अड्डा बन कर रह गया है।महानिदेशालय में विशेषज्ञ चिकित्सक जमे हुए हैं जिनको अस्पतालों में बैठकर ग्राउंड रियलिटी का सामना करना चाहिए। इसके उलट ये डॉक्टर निदेशालय में समान की खरीदफरोस्त और कर्मचारियों के ट्रांसफरपोस्टिंग के भ्रष्टाचार का कुचक्र बनाकर अड्डा डाले हुए हैं, और दिन भर वहा से अस्पतालो में कार्यरत डॉक्टरों को विभिन्न तरीकों से डराते और जलील करते हैं।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के छीछोरेपन का तो यह हाल है कि एक रिटायर्ड सीएमओ जिनकी पेंशन भी भ्रष्टाचार के चलते कुछ समय तक रुकी रही वे अब अनैतिक, असंवैधानिक तरीके से अपने अधीनस्थ रहे डॉक्टरों और स्टाफ के विरुद्ध RTI डाल रहे हैं जो कि अधिकारी बनने वाले डॉक्टरों की अनैतिक मनमानी का एक और सबूत है।
महानिदेशालय द्वारा मरीजों की दवाएं और उपकरण मुहैया कराने के बजाय अर्नगल बैठके करना तथा स्वास्थ्य मंत्रालय और सचिवालय को गुमराह करते रहने की प्रवृत्ति से प्रतीत होता है कि – महानिदेशालय को IAS ऑफिसर डीजी ही संभाल सकता है क्योंकि ऐसे वायरल वीडियो प्रकरण और मरीजों के इलाज में विघ्न पैदा करते रहने की अव्यवसायिक कार्यप्रणाली से यह सिद्ध हो गया है कि डॉक्टर निदेशालय की जिम्मेदारी संभालने में सक्षम ही नहीं है। डॉक्टरी का पेशा अतिमानवीय और जोखिम भरा है। डॉक्टरों और मजबूर रोगियों के बीच महानिदेशालय को दीवार नहीं दरवाजा बन कर खड़ा रहना होगा। अन्यथा भविष्य उस दीवार को गिरा देगा।