उत्तराखंड में पाले का कहर तेज, सड़कें बनी मौत का फंदा — 20 दिनों में 11 लोगों की मौत, 20 से अधिक घायल……..
देहरादून: उत्तराखंड में कड़ाके की ठंड ने हालात बिगाड़ दिए हैं। पहाड़ों और मैदानी इलाकों में पाला जमने के कारण सड़कें खतरनाक रूप से फिसलन भरी हो गई हैं। प्रदेश के कई हिस्सों में वाहनों के पाले की चपेट में आने के मामले सामने आ रहे हैं, जिससे दुर्घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं। पिछले लगभग 20 दिनों में अलग-अलग सड़क हादसों में 11 लोगों की मौत और 20 से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं।
ठंड में पाला बना नई चुनौती
सर्दी बढ़ने के साथ ही राज्य में कई मार्गों पर सुबह के समय पाले की सफेद परत नजर आने लगी है। हालांकि इस सीजन में गढ़वाल और कुमाऊं के ऊपरी इलाकों में बर्फबारी अपेक्षाकृत कम हुई है, लेकिन पाले की वजह से सड़कों पर बन रही फिसलन को नजरअंदाज करना जोखिम भरा है। पिछले वर्षों के हादसे यह साबित करते हैं कि जरा सी लापरवाही जिंदगी छीन सकती है।
पाला कैसे बनता है मौसम विशेषज्ञ का विश्लेषण।
मौसम वैज्ञानिक रोहित थपलियाल बताते हैं कि पाला मिट्टी या सड़क पर जमी बर्फ नहीं होता, बल्कि रात के समय तापमान गिरने पर वातावरण की नमी सतह पर जम जाती है। आसमान साफ रहने पर यह प्रक्रिया और तेज हो जाती है। ऐसी जगहें जहां धूप कम पहुँचती है, जैसे मोड़, पेड़ों की छाया, घाटियाँ या पुल—इन क्षेत्रों में पाला ज्यादा जमता है और सड़कें बेहद फिसलन भरी हो जाती हैं।
धूप से कम होता है खतरा, फिर भी सतर्कता अनिवार्य।
पाला केवल पहाड़ों तक सीमित नहीं है; मैदानी मार्ग भी इसकी चपेट में आते हैं। कई स्थानों पर पहाड़ों से बहकर आने वाला पानी रात के तापमान में गिरावट के बाद पतली बर्फ का रूप ले लेता है, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
20 दिनों में पाले ने बढ़ाई सड़क दुर्घटनाएं।
हाल के दिनों में कई सड़क हादसे पाले के कारण हुए हैं।
सबसे जोखिम वाले मार्ग:-
पिथौरागढ़ का झूलाघाट–पिथौरागढ़ मार्ग
मसूरी क्षेत्र
नैनीताल रोड
चमोली के ऊपरी इलाके
इन क्षेत्रों में लगातार हादसे दर्ज हुए हैं, जिनमें कई लोगों ने अपनी जान गंवाई है।
ज़रा सी चूक पड़ सकती है भारी — ड्राइवरों के लिए महत्वपूर्ण सुझाव।
वाहन धीमी गति से चलाएँ।
मोड़ों, ढलानों और कर्व पर अतिरिक्त सावधानी।
ब्रेक अचानक न लगाएँ—धीरे-धीरे दबाएँ।
वाहन में बेहतर ग्रिप वाले टायर लगाएँ।
सुबह और शाम की ड्राइविंग से बचें, क्योंकि पाला सबसे अधिक इन्हीं समयों में फिसलन पैदा करता है।
धूप निकलने के बाद ही पहाड़ी मार्गों पर सफर करें।
वाहन में इमरजेंसी किट अवश्य रखें।
छाया वाले हिस्सों, पुलों और घाटियों में खास सतर्कता रखें।
स्थानीय प्रशासन समय-समय पर पाला प्रभावित मार्गों पर नमक और चूने का छिड़काव करता है, लेकिन सतर्कता ही असली सुरक्षा है।
पहाड़ी रास्तों पर ट्रैवल बढ़ने से चिंता बढ़ी
क्रिसमस और नए साल के मौसम में पर्यटकों की आवाजाही बढ़ने वाली है। ऐसे में दुर्घटनाओं का जोखिम उन लोगों के लिए और बढ़ जाता है, जिन्हें पहाड़ों पर ड्राइविंग का अनुभव नहीं है।
SDRF की रिपोर्ट बताती है कि ठंड बढ़ते ही कई सड़क हादसे हो चुके हैं जिनमें 11 लोगों ने जान गंवाई है।
प्रशासन की अपील
स्थानीय प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि यात्रा से पहले मौसम और सड़क की स्थिति को जरूर जांचें और अनावश्यक जोखिम न लें। पहाड़ों पर संयम और सावधानी ही सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित कर सकती है।


