उत्तराखंड में आय से अधिक संपत्ति मामले में कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी की बढ़ी मुश्किलें……
देहरादून: आय से अधिक संपत्ति के मामले में घिरे कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी की मुसीबतें बढ़ गयी हैं। अब यह कैबिनेट को तय करना है कि वह गणेश जोशी के खिलाफ केस दर्ज करने की अनुमति देती है या नहीं। विशेष न्यायालय न्यायाधीश सतर्कता मनीष मिश्रा ने कैबिनेट को 8 अक्टूबर तक कैबिनेट को अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करने की समयसीमा दी है। केस की अगली सुनवाई 19 अक्टूबर को होगी।
विशेष न्यायालय न्यायाधीश सतर्कता मनीष मिश्रा ने 2 सितम्बर को इस मामले की सुनवाई की। विशेष न्यायालय न्यायाधीश सतर्कता मनीष मिश्रा ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को नजीर मानते हुए कहा कि शिकायत के लिए तीन महीने की समयसीमा के बाद ही कोर्ट किसी राय पर पहुंचेगी। यह समय सीमा 8 अक्तूबर को समाप्त हो रही है। इस दौरान कोर्ट ने गोपन विभाग के सचिव से कहा है कि वह कैबिनेट का निर्णय कोर्ट तक इस तिथि तक पहुंचा दे। इस संबंध में सचिव गोपन विभाग को सूचित कर दिया गया है।
गौरतलब है कि कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी पर आय से अधिक मामले को आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने उजागर किया था। विकेश ने कैबिनेट मंत्री को 2022 के विधानसभा चुनाव लड़ने के दौरान दायर किये गये हलफनामे को आधार बनाया। इसमें गणेश जोशी ने बताया कि उनके पास लगभग नौ करोड़ की संपत्ति है। विकेश का तर्क था कि गणेश जोशी का राजनीति के अलावा कोई आय का अन्य साधन नहीं है। गणेश जोशी के आयकर रिटर्न के आधार पर विधायक और मंत्री के तौर पर उन्हें विगत 15 साल में महज 35 लाख का वेतन मिला तो यह नौ करोड़ कहां से आए।
इस संबंध में विजिलेंस को शिकायत की गयी है। विजिलेंस ने जांच आख्या अदालत में प्रस्तुत कर दी है। कुल मिलाकर गणेश जोशी की मुश्किलें बढ़ गयी हैं।
पत्रावली पेश हुयी। प्रार्थी मय विद्वान अधिवक्ता उपस्थित है। राज्य की ओर से विद्वान विशेष लोक अभियोजक (फौजदारी) उपस्थित हैं।
2 प्रार्थी के प्रार्थना पत्र कागज संख्या-3क के प्रस्तर संख्या 1 से यह दर्शित हो रहा है कि विपक्षी वर्तमान में उत्तराखण्ड शासन में मंत्री पद पर आसीन है और उनके विरुद्ध थानाध्यक्ष / पुलिस अधीक्षक सतर्कता अधिष्ठान, कारगी चौक, देहरादून द्वारा सुसंगत धाराओं में मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही करने के लिये प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा-156(3) दण्ड प्रक्रिया संहिता इस आधार पर प्रस्तुत किया गया है कि विपक्षी द्वारा आय से अधिक सम्पत्ति अर्जित की गयी है।
इस सम्बन्ध में पुलिस अधीक्षक सतर्कता अधिष्ठान सेक्टर, देहरादून ने इस न्यायालय को अपनी आख्या कागज संख्या-हक/1 के रूप में भेजी है. जिसमें दिनाँक 17.08.2024 को विशेष लोक अभियोजक (फौजदारी) द्वारा अपनी आख्या के साथ उत्तराखण्ड शासन के कार्मिक एवं सतर्कता अनुभाग-8 का पत्र संख्या-223313/PVD5/24/2024 देहरादून दिनाँक 08.07.2024 संलग्न है, जिसमें सचिव मंत्री परिषद (गोपन विभाग) उत्तराखण्ड शासन को इस मामले में शासनादेश दिनांकित 29.08.1977 के प्रस्तर संख्या-4(1) के आलोक में शिकायत को प्रशासकीय विभाग मंत्री परिषद विभाग के स्तर पर परीक्षण एवं यथोचित कार्यवाही हेतु प्रेषित किये जाने का निर्णय लिये जाने की सूचना अपर सचिव कार्मिक एवं सतर्कता अनुभाग-5 द्वारा दी गयी है। ऐसे में यह दर्शित हो रहा है कि प्रश्नगत मामला मंत्री परिषद को निर्णय हेतु भेजा चुका है।
3. भारतीय संविधान के अनुसार मंत्री परिषद, कार्य पालिका की निर्णय लेने के लिये सर्वोच्च संस्था है। ऐसे में यदि कोई मामला किसी लोक सेवक के सम्बन्ध में निर्णय हेतु कार्य पालिका की सर्वोच्च संस्था के समक्ष विचाराधीन हो, तो किसी न्यायालय को निर्धारित समयावधि से पूर्व कोई आदेश पारित करना न्यायासंगत नहीं होता है। यह सही है कि वर्तमान मामला भारा-17ए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अन्तर्गत विश्लेषित किया जाना है, परन्तु यदि अब धारा-17ए से पूर्व धारा-19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अन्तर्गत माननीय सर्वोच्च न्यायालय के डा०सुब्रहामण्यम स्वामी बनाम डा० मनमोहन सिंह व अन्य, ए०आई० आर0,2012 सुप्रीम कोर्ट, पेज-1185 के निर्णय का परिशीलन किया जाये तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उपरोक्त निर्णय में किसी भी अभियोजन स्वीकृति के
लिये तीन माह की समयावधि नियत की है। ऐसे में इस न्यायालय के मत में मामला मंत्री परिषद को भेजे जाने का पत्र दिनोंकित 08.07.2024, जो पत्रावली पर कागज संख्या-8क/2 है, के आलोक में दिनाँक 08.07.2024 से तीन माह की समयावधि अर्थात दिनाँक 08.10.2024 तक इस मामले में मंत्री परिषद के निर्णय का इन्तजार किया जाना न्यायोचित है। तदानुसार यह न्यायालय इस पत्रावली में दिनाँक 08.10.2024 के बाद की तिथि लगाना न्यायोचित समझता है।
4. उपरोक्त विवेचना के साथ यह न्यायालय यह अवधारित करता है कि इस पत्रावली में दिनाँक 08.10.2024 के उपरान्त ही सुनवायी किया जाना न्यायसंगत है। मंत्री परिषद उत्तराखण्ड द्वारा दिये गये निर्णय के सम्बन्ध में यह न्यायालय सचिव मंत्री परिषद (गोपन विभाग) उत्तराखण्ड शासन से अनुरोध करता है कि वह मंत्री परिषद उत्तराखण्ड द्वारा लिये गये निर्णय से इस न्यायालय को अवगत करायें। मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों तथा दिनाँक 08.10.2024 तक निर्णय लिये जाने के मंत्री परिषद के पास निहित विवेकाधिकार को देखते हुये इस पत्रावली में यह न्यायालय दिनॉक 19.10.2024 की तिथि नियत करता है।
5. इस आदेश की एक प्रति अनुपालनार्थ सचिव मंत्री परिषद (गोपन विभाग) उत्तराखण्ड शासन को प्रेषित की जाये। पत्रावली दिनाँक 19.10.2024 को पेश हो।